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Short Hindi Poem - महंगाई

हो रहा था शहर में आज स्वयंवर,
लड़की ढूंढ रही थी अपने लिए वर।
लड़की की थी अच्छी खासी लंबाई,
नाम था उसका महंगाई।
महंगाई थोड़ा सा मुस्कुराई ,
बोली मुझसे आपको कहीं देखा है।
मैंने टांग रखा था फटा पुराना बस्ता ,
हाथ बढ़ाकर बोला मैं मिस्टर सस्ता।
वह गुस्से में बोली तेरा मेरा क्या मेल,
तू पुरानी चिट्ठी मैं हूं ईमेल।
मैं एक दिन में कितना ऊंचा सफर तय करती हूं,
तेरी तरह थोड़ी रेंग रेंग कर चलती हूं।
कर्ज़ मेरा बाप है मां मेरी मिसेस खर्चीली,
आम आदमी की हालत कर देती हूं पतली।
तू मेरा क्या मुकाबला कर पाएगा,
कुछ साल बाद तेरा नाम मिट्टी मिल जाएगा।
 हर सामान में मैं हूं मौजूद,
खत्म हो चुका तेरा वजूद।
तू किसी सामान में नहीं बसता है,
मेरे हिसाब से यहां आदमी ही सस्ता।
आदमी जब कोई सड़क पर गिरता है,
कोई पैदल या वाहन नहीं रुकता है।
500 का नोट जब सड़क पर पड़ा होता है,
उसे उठाने को बड़ों बड़ों का मन होता है ।
मैं मायावी हूं ,जादू करना मुझे आता है ,
पर मुझे काबू करना किसी को नहीं आता है।




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