" कोई तो पास है मेरे "
कोई तो पास है मेरे
चलो तन्हाईयाँ ही सही
बातें बहुत की उनसे हमने
फिर भी रह गयी अनकही,
दौर तो मुश्किल था मगर
जो काट लिया वो था सही
मैं तो सोच कर गया था हाँ
मगर उन्होंने कह दिया नहीं,
लड़ तो मैं वक़्त से भी लेता
पर बाजुओं में वो ताक़त ना रही
काट नहीं पा रहा अब सफ़र
रास्ता जबकि है भी वही,
बुलंदिया छु ली थी इतनी मैंने
मंजिले मुझे खुद तलाशती रही
वक़्त जब देने लगा मेरे साथ
हाथों पर भी लकीरें बनती रही
कोई तो पास है मेरे
चलो तन्हाईयाँ ही सही
बातें बहुत की उनसे हमने
फिर भी रह गयी अनकही,
दौर तो मुश्किल था मगर
जो काट लिया वो था सही
मैं तो सोच कर गया था हाँ
मगर उन्होंने कह दिया नहीं,
लड़ तो मैं वक़्त से भी लेता
पर बाजुओं में वो ताक़त ना रही
काट नहीं पा रहा अब सफ़र
रास्ता जबकि है भी वही,
बुलंदिया छु ली थी इतनी मैंने
मंजिले मुझे खुद तलाशती रही
वक़्त जब देने लगा मेरे साथ
हाथों पर भी लकीरें बनती रही
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