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"कर्मातीत स्थिति की निशानियाँ"


गीता ज्ञान का पहला पाठ - अशरीरी आत्मा बनो और अन्तिम पाठ - नष्टोमोहा, स्मृतिस्वरूप बनो। तो पहला पाठ है विधि और अन्तिम पाठ है विधि से सिद्धि। तो गीता पाठशाला वाले हर समय यह पाठ पढ़ते हैं कि सिर्फ मुरली सुनाते हैं...? क्योंकि सच्ची गीता-पाठशाला की विधि यह है - पहले स्वयं पढ़ना अर्थात् बनना फिर औरों को निमित्त बन पढ़ाना। तो सभी इस विधि से सेवा करते हो...? क्योंकि आप सभी इस विश्व के आगे परमात्म पढ़ाई का सैम्पल हो। तो सैम्पल का महत्त्व होता है। सैम्पल अनेक आत्माओं को ऐसा बनने की प्रेरणा देता है। तो गीता-पाठशाला वालों के ऊपर बड़ी ज़िम्मेवारी है। 

अगर ज़रा भी सैम्पल बनने में कमी दिखाई तो अनेक आत्माओं के भाग्य बनाने के बजाए, भाग्य बनाने से वंचित करने के निमित्त भी बन जायेंगे ... क्योंकि देखने वाले, सुनने वाले साकार रूप में आप निमित्त आत्माओं को देखते हैं। बाप (निराकार परमात्मा शिव) तो गुप्त हैं ना...! इसलिए ऐसा श्रेष्ठ कर्म सदा करके दिखाओ जो आपके श्रेष्ठ कर्मों को देख, अनेक आत्माओं के श्रेष्ठ कर्मों के भाग्य की रेखा श्रेष्ठ बना सको। तो एक तो अपने को सदा सैम्पल समझना और दूसरा, सदा अपना सिम्बल याद रखना। सिम्बल कौन-सा है, जानते हो...? - ‘कमल पुष्प’। बापदादा ने सुनाया है कि कमल बनो और अमल करो। कमल बनने का साधन ही है अमल करना। अगर अमल नहीं करते तो कमल नहीं बन सकते। इसलिए ‘सैम्पल है’ और ‘कमलपुष्प’ का सिम्बल सदा बुद्धि में रखो। समझा, आगे क्या करना है...? 

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हमारा ध्यान जहां होगा हमारी उर्जा उस दिशा में गति करने लगती है। यदि हमारा ध्यान प्रेम में होगा तो उर्जा ह्रदय केंद्र की ओर गति करने लगती है और ह्रदय केंद्र को सक्रिय करने लगती है। यदि हमारा ध्यान कामवासना में होगा तो हमारी उर्जा कामकेंद्र की ओर गति करने लगती है और कामकेंद्र को सक्रिय करने लगती है। हमारा ध्यान जिस केंद्र पर होगा वह केंद्र सक्रिय होगा और अपना काम करेगा।  सामान्यतः हमारा ध्यान मष्तिष्क में होता है तो उर्जा मष्तिष्क की ओर गति करने लगती है और मष्तिष्क सक्रिय होने लगता है, यानी विचार करने लगता है। यदि हम आज्ञाचक्र या किसी वस्तु पर अपना ध्यान ले जाते हैं तो निर्विचार हो जाते हैं। क्योंकि हमरे विचार का केंद्र है मष्तिष्क जो विचार करता है और यदि हम अपने मष्तिष्क से ध्यान हटाकर आज्ञाचक्र पर ले जाते हैं तो हमारे विचार इसलिए रूकते हैं कि आज्ञाचक्र विचार का केंद्र नहीं है। आज्ञाचक्र विचार नहीं करता है, विचार करता मष्तिष्क!  हमने यहां विचारों के साथ कुछ नहीं किया है, सिर्फ अपनी चेतना को मष्तिष्क से हटाकर आज्ञाचक्र पर ले आए हैं और आज्ञाचक्र विचार नहीं करता है इसलिए हम निर्वि...

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डिप्रेशन -  मानसिक तनाव से तुरंत राहत देते हुए ध्यान में प्रवेश करवाने वाला एक सहज उपाय।  सब यही कहते हैं कि तनाव से मुक्ति पाने के लिए हमें ध्यान में प्रवेश करना होगा। लेकिन जब तक हम तनाव से मुक्ति न पा लें, तब तक ध्यान में प्रवेश कैसे कर सकते हैं? तनाव ही तो हमें ध्यान में प्रवेश करने से रोके हुए हैं?  तो पहले हम तुरंत तनाव मुक्ति का एक उपाय करते हैं। एक ऐसा उपाय जो पहले तनाव से मुक्त करेगा फिर हमें ध्यान में प्रवेश करवाएगा।  जब भी तनाव महसूस हो और मन खिन्न होने लगे तब इस प्रयोग को करना है। बैठ जाएं या विश्राम में लेट जाएं। आंखें बंद कर लें। शरीर को ढीला छोड़ दें। शिथिल छोड़ दें और श्वास को गहरी और धीमी लेना शुरू करें। श्वास को नाभि तक जाने दें। और कुछ भी नहीं करना है। सिर्फ श्वास को नाभि तक चलने देना है। यानि श्वास चले तब नाभि पेट के साथ उपर- नीचे उठे। ठीक वैसी श्वास लेनी है जैसी हमरे शरीर के नींद में जाने पर चलती है। नींद में हमारा पेट उपर -नीचे होता रहता है। शरीर को ढीला रखना श्वास के गहरी होने में मदद करेगा।  शरीर ढीला रहेगा तो श्वास स्वतः ही गहरी हो नाभि ...

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